लोगों को मौत के मुंह में झोंक रहे कोयला, कबाड़ और रेत माफिया

काले कारोबार के पीछे कहीं पाण्डेय और यादव की जोड़ी तो नहीं!
अनमोल संदेश, शहडोल
विगत 2-3 वर्षां के दौरान जिले में कबाड़, कोयले और रेत माफियाओं के कारण लगभग एक दर्जन से अधिक लोग काल के गाल में समा चुके हैं। इसमें शासकीय कर्मचारियों से लेकर गरीब, आदिवासी तक शामिल हैं।
जिले में अवैध करोबार का जाल कितना तगड़ा है इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिले में पिछले 2-3 वर्षां में एक दर्जन से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। जिले के बटुरा, बिछिया, रामपुर, आमाड़ांड, बरतरा, ओपीएम क्षेत्र में कई अवैध खदाने संचालित हो रही हैं इन स्थानों से अवैध कोयले का खनन ग्रामीणों द्वारा कोल माफियाओं द्वारा कराया जाता है। जानकारी के अनुसार पाण्डेय और यादव की जोड़ी इस काले कारनामें को अंजाम दे रही है।
ग्रामीणजन छोटी-छोटी खदाने बनाकर, कोयले को बोरियों में भर-भरकर इक_ा करते हैं और, साइकिल, मोटरसाइकिल एवं ट्रेक्टर के माध्यम से उक्त खनन कारोबारियों को औने-पौने दामों पर बेचते हैं। अपनी जान को जोखिम में डालकर गहरी-गहरी गोफ बनाकर कोयले का अवैध उत्खनन किया जाता है। जिसे कोयला कारोबारी जिले के बाहर ऊँचे दामों पर बेचते हैं। कोयला का यह काला कारोबार लगातार होता है, यह कारोबार कोई एक-दो बोरी या एक-दो ट्रॉली का नहीं है, प्रतिमाह दर्जनो हाईवा कोयला इन छोटी-छोटी अवैध खदानों से इक_ा कर बाहर बेचा जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर जिले के बाहर तक यह कोयला पहुँचाया जाता है। क्या इस प्रक्रिया कि जरा भी भनक पुलिस, प्रशासन, खनिज विभाग, वन विभाग या राजस्व अमले को नहीं होती।
क्या ग्राम पंचायतों के सरपंच, सचिव, पंच इत्यादि किसी को भी इस कार्य के बारे में जरा भी जानकारी नहीं होती? सवाल बहुत सारे खड़े होते हैं, जब कोई जनहानि हो जाती है। बताया जाता है कि नीचे से लेकर ऊपर तक सबका हिस्सा फिक्स रहता है, जानकारी सबको रहती है, लेकिन सब इस काले कारोबार के हिस्सेदार होते हैं इसलिए कार्यवाहियाँ नहीं होती हैं।
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